कहानी संग्रह >> धर्मवीर भारती की सम्पूर्ण कहानियां धर्मवीर भारती की सम्पूर्ण कहानियांधर्मवीर भारती
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धर्मवीर भारती की 36 सदाबहार कहानियों का संग्रह
कोई भी श्रेष्ठ लेखक अपनी एक ख़ास साँचे में पड़ी तस्वीर के भीतर हमेशा नहीं रहना चाहता। वह गतिमान रहता है या - रहना चाहता है। लेखक को उसकी सतत गत्यात्मकता में पकड़ना उतना ही दूभर है, जितना एक पक्षी को उसकी उड़ान में पूरा देख पाना...
धर्मवीर भारती एक ऐसे ही लेखक थे। वह दूर से जो होने का भ्रम देते थे, पास आते ही बदल जाते थे। उनकी प्रारम्भिक रचनाओं को पढ़कर जो शब्द बार-बार मन में आता है - वह ‘रोमाण्टिक’ है। भीगती मसों का रोमांस, पवित्र निष्कलंक किस्म की आदर्शवादिता, आध्यात्मिक अन्तर्लोक का सुगन्धित वायुमण्डल, जिसमें प्रवेश करने से पहले पैरों से कीचड़ में सने जूते उतारने पड़ते हैं। यदि स्वातन्त्र्योत्तर भारत के ग्राम जीवन के अद्भुत चितेरे रेणु हैं, तो शहरी गलियों के धूप-छाँही संसार के ‘मिनियेचर चित्रकार’ भारती। चाहे आरम्भिक कहानियों की उदात्त आदर्शवादिता हो, अथवा बाद की कहानियों की निर्मम, ठण्डी, व्यस्क वस्तुपरकता, दोनों में ही ‘कला की महान् चेतना और चेतना के मूल में यथार्थ रूप की प्रेरणा’ समान रूप से विद्यमान रहती है।
एक लेखक के रूप में भारती की दृष्टि सर्वथा ‘आधुनिक’ है - यदि आधुनिक से हमारा अर्थ उस ‘स्वतन्त्र चेतना’ से है जो बिना किसी पूर्व-निर्धारित मताग्रह अथवा आस्था की बैसाखी का सहारा लिये हर चीज़ को उसकी वस्तुगत नग्नता में परखती-तौलती है।
भारती हमारे समय के उन दुर्लभ, असाधारण लेखकों में से थे, जिन्होंने अपनी सर्वतोमुखी प्रतिभा से साहित्य की हर विधा को एक नया, अप्रत्याशित मोड़ दिया था। कहानियाँ हों या उपन्यास या नाटक - वह उनमें एक ऐसी ताज़ा, मौलिक दृष्टि लेकर आये थे जिसे किसी कलाकार में देखकर अनायास उसके लिए ‘जीनियस’ शब्द मन में कौंधता हैं।
धर्मवीर भारती एक ऐसे ही लेखक थे। वह दूर से जो होने का भ्रम देते थे, पास आते ही बदल जाते थे। उनकी प्रारम्भिक रचनाओं को पढ़कर जो शब्द बार-बार मन में आता है - वह ‘रोमाण्टिक’ है। भीगती मसों का रोमांस, पवित्र निष्कलंक किस्म की आदर्शवादिता, आध्यात्मिक अन्तर्लोक का सुगन्धित वायुमण्डल, जिसमें प्रवेश करने से पहले पैरों से कीचड़ में सने जूते उतारने पड़ते हैं। यदि स्वातन्त्र्योत्तर भारत के ग्राम जीवन के अद्भुत चितेरे रेणु हैं, तो शहरी गलियों के धूप-छाँही संसार के ‘मिनियेचर चित्रकार’ भारती। चाहे आरम्भिक कहानियों की उदात्त आदर्शवादिता हो, अथवा बाद की कहानियों की निर्मम, ठण्डी, व्यस्क वस्तुपरकता, दोनों में ही ‘कला की महान् चेतना और चेतना के मूल में यथार्थ रूप की प्रेरणा’ समान रूप से विद्यमान रहती है।
एक लेखक के रूप में भारती की दृष्टि सर्वथा ‘आधुनिक’ है - यदि आधुनिक से हमारा अर्थ उस ‘स्वतन्त्र चेतना’ से है जो बिना किसी पूर्व-निर्धारित मताग्रह अथवा आस्था की बैसाखी का सहारा लिये हर चीज़ को उसकी वस्तुगत नग्नता में परखती-तौलती है।
भारती हमारे समय के उन दुर्लभ, असाधारण लेखकों में से थे, जिन्होंने अपनी सर्वतोमुखी प्रतिभा से साहित्य की हर विधा को एक नया, अप्रत्याशित मोड़ दिया था। कहानियाँ हों या उपन्यास या नाटक - वह उनमें एक ऐसी ताज़ा, मौलिक दृष्टि लेकर आये थे जिसे किसी कलाकार में देखकर अनायास उसके लिए ‘जीनियस’ शब्द मन में कौंधता हैं।
- निर्मल वर्मा
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